Google
6417mera%20desh%20mera%20jeevan%20m
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
गुरुवार, 5 अगस्त 2010
Do You Know Your Sonia? - by Dr. Subramanian Swamy
We have to ensure that the Maino clan does not stay in power. Dr. Manmohan Singh may be PM, which is a small relief, but he is not a fighter. The real power in government today is wielded by the Maino mafia gang. Can they be dethroned? I argue that they must be, for India’s integrity and democracy.
In Indian democracy, other than by losing majority, only a shocking scandal can unseat a government. Today’s priority is however not for toppling the Congress government as such, since Manmohan Singh is a decent and scholarly person, but in driving the Maino clan out of India. If the only way that can be done is by toppling the Singh government, then so be it. But the successor government should be such that it will not protect Sonia and her clan as Vajpayee’s did.
It will although not be long before Sonia will give Manmohan Singh marching orders, and he will march out meekly. We should not expect him to resist. Thus time with patriotic Indians is limited.
With Sonia’s defacto government in place, it is also unrealistic to expect that I can get an early victory in the courts on the KGB and antique smuggling cases. The most potent scandal at hand, therefore, that can dislodge the Maino clan[including Rahul and Priyanka] lies in exposing their existing Italian citizenship. That will galvanise the people.
In 1992, Sonia had revived her citizenship of Italy under Article 17 of the Italian Citizenship Law [Act 91 of 1992]. Rahul and Priyanka were born Italian citizens because Sonia was Italian when she gave birth to them[Italian law based on jure sanguinis]. (see Annexure-19) Hence, they continue be Italians since they have never renounced their citizenship upon becoming 21 years old. Both, Rahul and Priyanaka have been traveling abroad on Italian passports. They may now acquire Venezuela passports too, since Rahul Gandhi’s wife, Veronica, is a Venezuelan. (See annexure- 20) That means one more foreign bahu for us tolerant Indians. The Maino-Gandhis are certainly getting Indian society globalised in their own selfish way.
To end Bharat Mata’s shame and pain, what can patriotic Indians do in a democracy?
As a first step there is an urgent need to document the facts about their citizenship on notarized paper, for which we need to set up a network in London, Milan, Hongkong, and in Venezuela. Those persuaded by my above stated facts and arguments may join in and help set up this network. Other steps can come later once this is accomplished.
Sorce:http://www.janataparty.org/soniaintro.html
In Indian democracy, other than by losing majority, only a shocking scandal can unseat a government. Today’s priority is however not for toppling the Congress government as such, since Manmohan Singh is a decent and scholarly person, but in driving the Maino clan out of India. If the only way that can be done is by toppling the Singh government, then so be it. But the successor government should be such that it will not protect Sonia and her clan as Vajpayee’s did.
It will although not be long before Sonia will give Manmohan Singh marching orders, and he will march out meekly. We should not expect him to resist. Thus time with patriotic Indians is limited.
With Sonia’s defacto government in place, it is also unrealistic to expect that I can get an early victory in the courts on the KGB and antique smuggling cases. The most potent scandal at hand, therefore, that can dislodge the Maino clan[including Rahul and Priyanka] lies in exposing their existing Italian citizenship. That will galvanise the people.
In 1992, Sonia had revived her citizenship of Italy under Article 17 of the Italian Citizenship Law [Act 91 of 1992]. Rahul and Priyanka were born Italian citizens because Sonia was Italian when she gave birth to them[Italian law based on jure sanguinis]. (see Annexure-19) Hence, they continue be Italians since they have never renounced their citizenship upon becoming 21 years old. Both, Rahul and Priyanaka have been traveling abroad on Italian passports. They may now acquire Venezuela passports too, since Rahul Gandhi’s wife, Veronica, is a Venezuelan. (See annexure- 20) That means one more foreign bahu for us tolerant Indians. The Maino-Gandhis are certainly getting Indian society globalised in their own selfish way.
To end Bharat Mata’s shame and pain, what can patriotic Indians do in a democracy?
As a first step there is an urgent need to document the facts about their citizenship on notarized paper, for which we need to set up a network in London, Milan, Hongkong, and in Venezuela. Those persuaded by my above stated facts and arguments may join in and help set up this network. Other steps can come later once this is accomplished.
Sorce:http://www.janataparty.org/soniaintro.html
लेबल:
janataparty,
Rahul and Priyanaka,
Sonia
गुरुवार, 24 जून 2010
आपातकाल वह काली रात, जब लोकतंत्र हुआ था नजरबंद :आईएएनएस
वह काली रात, जब लोकतंत्र हुआ था नजरबंद
(आपातकाल की 33 वीं सालगिरह पर विशेष)
नई दिल्ली, 24 जून(आईएएनएस)। इतिहास में प्रत्येक युग किसी बड़ी अवधारणा का द्योतक होता है, जिसे कई वैज्ञानिकों और राजनीतिक चिंतकों ने 'सामूहिक मन' कहा है। जब यह अवधारणा अधिकांश लोगों के दिलो-दिमाग पर छा जाती है, तब वह इतिहास की प्रेरक शक्ति बन जाती है। इस दृष्टि से देखने पर पता चलेगा कि बीसवीं शताब्दी के अधिकांश आंदोलन परस्पर संबंधित दो बड़ी अवधारणाओं से प्रेरित थे-स्वतंत्रता और लोकतंत्र।
स्वतंत्रता की तलाश में कई परतंत्र राष्ट्रों ने उपनिवेशवादी शासन के विरुध्द संघर्ष किया। हालाँकि राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए इनमें से अधिकांश संघर्षों की शुरुआत अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में हुई, लेकिन उनके परिणाम मुख्य रूप से बीसवीं शताब्दी में प्राप्त हुए। राष्ट्र की स्वतंत्रता के साथ अन्य सशक्त आकांक्षाएँ भी पनपीं-जैसे राजतंत्र, सैनिक तानाशाह, निरंकुश कम्युनिस्ट पार्टी अथवा अन्य प्रकार की दमनकारी व्यवस्था के विरुध्द जनता के शासन की आकांक्षा। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष तो विदेशी शक्ति के विरुध्द करना पड़ा, किंतु लोकतंत्र के लिए संघर्ष आंतरिक शासन-व्यवस्था के विरुध्द करना पड़ा।
कई देशों में राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए अभियान जितना कठिन था, लगभग उतना ही कठिन था लोकतंत्र के लिए संघर्ष-और इसे उतने ही हिंसात्मक रूप से कुचल दिया गया। भावी इतिहासकार यह दर्ज करेंगे कि दो विश्व युध्द यदि बीसवीं शताब्दी के फलक पर दाग हैं तो स्वतंत्रता और लोकतंत्र की विजय इस युग की गौरवशाली उपलब्धि हैं।
भारत में हम लोग सौभाग्यशाली रहे कि हमारे पड़ोसी देशों और विश्व के अन्य देशों की भाँति सन् 1947 में ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के बाद हमें लोकतंत्र के लिए अलग से युध्द नहीं करना पड़ा। स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र उतने ही सहज ढंग से आया जैसे कि यहाँ पर पंथनिरपेक्षता स्वाभाविक रूप से थी; जैसाकि मैं इस संबंध में आगे चर्चा करूँगा। इन दोनों अवधारणाओं की स्वाभाविक स्वीकृति मुख्य रूप से भारत की हिंदू प्रकृति के कारण हुई। मानव इतिहास में हमेशा ऐसे उदाहरण रहे हैं कि कोई अवधारणा कितनी भी उदार क्यों न हो और उसकी जड़ें देश की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक भूमि में कितनी ही गहरी क्यों न हो, किंतु ऐसा नहीं हुआ है कि वह अहंकार-प्रेरित और सत्ता की लोलुपता में मदांध लोगों के प्रहार से सदैव बच गई हो। जब ऐसे प्रहार होते हैं तो जिस अवधारणा पर प्रहार होता है, कुछ देर के लिए उसपर ग्रहण लग जाता है। लेकिन ग्रहणकाल की इसकी वेदना ही छाए हुए अंधकार को दूर करने के लिए संघर्ष हेतु और अविनाशी अवधारणा के देदीप्यमान प्रकाश को बिखेरने के लिए विशाल जनसमूह को प्रेरित करती है।
ऐसा लगता है कि राष्ट्र को उचित सीख लेने और इसके माध्यम से उस अवधारणा हेतु अपनी प्रतिबध्दता बहाल करने के लिए इतिहास जान-बूझकर ऐसी अग्नि-परीक्षा की स्थिति पैदा करता है।
ऐसा ही कुछ जून 1975 में भारत में हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत पर कू्रर आपातकालीन शासन लागू कर लोकतंत्र पर ग्रहण लगा दिया। उन्नीस माह के बाद कांग्रेस पार्टी की तानाशाही के विरुध्द भारत की जनता के गौरवशाली संघर्ष के परिणामस्वरूप यह ग्रहण छँटा। यदि आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक अंधकारमय अवधि थी तो लोकतंत्र की बहाली के लिए किया गया विजयी संघर्ष सबसे देदीप्यमान घटना। ऐसा हुआ कि मैं अपने हजारों देशवासियों की तरह आपातकाल की संपूर्ण उन्नीस माह की अवधि जेल में व्यतीत करने के कारण इसका भुक्तभोगी तथा आपातकाल के विरुध्द युध्द में विजय प्राप्त करनेवाली लोकतंत्र सेना का एक सेनानी-दोनों रूपों में था।
जून 1975 की दो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ:
भारत की स्वतंत्रता के साठ वर्षों पर नजर डालने पर पता चलता है कि इन छह दशकों में दो तिथियाँ ऐसी हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है और ये दोनों जून 1975 से जुड़ी हुई हैं।
इनमें से एक है-12 जून। सभी राजनीतिक विश्लेषकों को अचंभे में डालते हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में इंदिरा कांग्रेस की भारी पराजय हुई। दूसरा, उसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा में चुने जाने को निरस्त कर दिया और इसके साथ ही चुनावों में भ्रष्टाचार फैलाने के आधार पर उन्हें छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया।
दूसरी तिथि है-25 जून। लोकतंत्र-प्रेमियों के लिए यह तिथि स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे काले दिवसों में से एक के रूप में याद रखी जाएगी। इस दुर्भाग्यपूर्ण तिथि से घटनाओं की ऐसी शृंखला चल पड़ी, जिसने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी तानाशाही में परिवर्तित कर दिया।
दिल्ली में जून के महीने में सबसे अधिक गरमी होती है। अतएव जब दल-बदल के विरुध्द प्रस्तावित कानून से संबंधित संयुक्त संसदीय समिति ने बगीचों के शहर बंगलौर, जो कि ग्रीष्मकाल में भी अपनी शीतल-सुखद जलवायु के लिए विख्यात है, में 26-27 जून को अपनी बैठक करने का निर्णय लिया तो मुझे काफी प्रसन्नता हुई। हम दोनों-अटलजी और मैं-इस समिति के सदस्य थे, जिसके कांग्रेस (ओ) के नेता श्याम नंदन मिश्र भी सदस्य थे।
हालाँकि, जब 25 जून की सुबह मैं दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर बंगलौर जानेवाले विमान पर सवार हुआ तो मुझे इस बात का जरा भी खयाल नहीं था कि यह यात्रा दो वर्ष लंबी अवधि के लिए मेरे 'निर्वासन' की शुरुआत है, जिसके संबंध में माउंट आबू बैठक के दौरान पार्टी सांसद और प्रख्यात ज्योतिषी डॉ. वसंत कुमार पंडित ने भविष्यवाणी की थी।
लोकसभा के अधिकारियों ने बंगलौर हवाई अड्डे पर मेरे सहयात्री मिश्र और मेरी अगवानी की। राज्य विधानसभा के विशाल भवन के पास स्थित विधायक निवास पर हमें ले जाया गया। अटलजी एक दिन पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे। इस संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष थे-कांग्रेस पार्टी के दरबारा सिंह, जो बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री बने।
26 जून को सुबह 7.30 बजे मेरे पास जनसंघ के स्थानीय कार्यालय से एक फोन आया। दिल्ली से जनसंघ के सचिव रामभाऊ गोडबोले का एक अत्यावश्यक संदेश था। वे कह रहे थे कि मध्य रात्रि के तुरंत बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तारी जारी है। पुलिस शीघ्र ही अटलजी और आपको गिरफ्तार करने के लिए पहुँचने वाली होगी। मैंने यह सूचना श्याम बाबू को दी। इसके बाद हम लोग एक साथ अटलजी के कमरे में गए। इस संबंध में संक्षिप्त चर्चा के बाद हम इस निर्णय पर पहुँचे कि हम लोग गिरफ्तारी से बचने का प्रयास नहीं करेंगे।
8.00 बजे आकाशवाणी से समाचार सुनने के लिए मैंने रेडियो चलाया। मुझे आकाशवाणी समाचारवाचक की परिचित आवाज के स्थान पर इंदिरा गांधी की गमगीन आवाज सुनाई दी। यह उनका राष्ट्र के नाम किया जानेवाला अचानक प्रसारण था, इस सूचना के साथ कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल घोषित कर दिया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आंतरिक अशांति से निबटने के लिए आपातकाल लागू करना आवश्यक था।
मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, जब मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना कि विपक्ष के बहुत बड़े षडयंत्र से देश को बचाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही उनका मनगढ़ंत आरोप यह था कि कुछ ऐसे तत्त्व हैं, जो लोकतंत्र के नाम पर भारत के लोकतंत्र को मिटाने के लिए तत्पर थे और इसे रोकने की आवश्यकता थी।
अटलजी और मैंने एक संयुक्त प्रेस वक्तव्य तैयार किया, जिसमें जयप्रकाशजी* और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी की भर्त्सना की गई, आपातकाल की निंदा की गई और घोषणा की गई कि 26 जून, 1975 का वही ऐतिहासिक महत्त्व होगा, जो स्वतंत्रता पूर्व अवधि में 9 अगस्त, 1942 का है, जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासकों से कहा था-'भारत छोड़ो।'
हालाँकि यह वक्तव्य एक व्यर्थ प्रयास था। लोगों तक इस संदेश को पहुँचाने का कोई माध्यम ही नहीं था, क्योंकि आपातकाल की घोषणा के साथ ही सरकार ने तानाशाही की चिरपरिचित परंपरा के अनुकूल प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी। स्वतंत्रता के बाद पहली बार प्रेस पर पूर्ण सेंसरशिप** लगाई गई थी।
पुलिस हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए सुबह 10.00 बजे आ पहुँची। प्रख्यात समाजवादी नेता मधु दंडवते भी एक अन्य संसदीय समिति की बैठक में भाग लेने के लिए बंगलौर में मौजूद थे, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। हम चारों को बंगलौर सेंट्रल जेल ले जाया गया। उस दिन, मेरी डायरी*** में उल्लिखित है-''26 जून, 1975 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का अंतिम दिन हो सकता है। आशा करता हूँ कि मेरा यह भय गलत सिध्द हो।'
-लालकृष्ण आडवाणी
(यह लेख वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा 'मेरा देश मेरा जीवन' से लिया गया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण 25 जून को भोपाल में श्रीश्री रविशंकर करेंगे )
(आपातकाल की 33 वीं सालगिरह पर विशेष)
नई दिल्ली, 24 जून(आईएएनएस)। इतिहास में प्रत्येक युग किसी बड़ी अवधारणा का द्योतक होता है, जिसे कई वैज्ञानिकों और राजनीतिक चिंतकों ने 'सामूहिक मन' कहा है। जब यह अवधारणा अधिकांश लोगों के दिलो-दिमाग पर छा जाती है, तब वह इतिहास की प्रेरक शक्ति बन जाती है। इस दृष्टि से देखने पर पता चलेगा कि बीसवीं शताब्दी के अधिकांश आंदोलन परस्पर संबंधित दो बड़ी अवधारणाओं से प्रेरित थे-स्वतंत्रता और लोकतंत्र।
स्वतंत्रता की तलाश में कई परतंत्र राष्ट्रों ने उपनिवेशवादी शासन के विरुध्द संघर्ष किया। हालाँकि राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए इनमें से अधिकांश संघर्षों की शुरुआत अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में हुई, लेकिन उनके परिणाम मुख्य रूप से बीसवीं शताब्दी में प्राप्त हुए। राष्ट्र की स्वतंत्रता के साथ अन्य सशक्त आकांक्षाएँ भी पनपीं-जैसे राजतंत्र, सैनिक तानाशाह, निरंकुश कम्युनिस्ट पार्टी अथवा अन्य प्रकार की दमनकारी व्यवस्था के विरुध्द जनता के शासन की आकांक्षा। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष तो विदेशी शक्ति के विरुध्द करना पड़ा, किंतु लोकतंत्र के लिए संघर्ष आंतरिक शासन-व्यवस्था के विरुध्द करना पड़ा।
कई देशों में राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए अभियान जितना कठिन था, लगभग उतना ही कठिन था लोकतंत्र के लिए संघर्ष-और इसे उतने ही हिंसात्मक रूप से कुचल दिया गया। भावी इतिहासकार यह दर्ज करेंगे कि दो विश्व युध्द यदि बीसवीं शताब्दी के फलक पर दाग हैं तो स्वतंत्रता और लोकतंत्र की विजय इस युग की गौरवशाली उपलब्धि हैं।
भारत में हम लोग सौभाग्यशाली रहे कि हमारे पड़ोसी देशों और विश्व के अन्य देशों की भाँति सन् 1947 में ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के बाद हमें लोकतंत्र के लिए अलग से युध्द नहीं करना पड़ा। स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र उतने ही सहज ढंग से आया जैसे कि यहाँ पर पंथनिरपेक्षता स्वाभाविक रूप से थी; जैसाकि मैं इस संबंध में आगे चर्चा करूँगा। इन दोनों अवधारणाओं की स्वाभाविक स्वीकृति मुख्य रूप से भारत की हिंदू प्रकृति के कारण हुई। मानव इतिहास में हमेशा ऐसे उदाहरण रहे हैं कि कोई अवधारणा कितनी भी उदार क्यों न हो और उसकी जड़ें देश की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक भूमि में कितनी ही गहरी क्यों न हो, किंतु ऐसा नहीं हुआ है कि वह अहंकार-प्रेरित और सत्ता की लोलुपता में मदांध लोगों के प्रहार से सदैव बच गई हो। जब ऐसे प्रहार होते हैं तो जिस अवधारणा पर प्रहार होता है, कुछ देर के लिए उसपर ग्रहण लग जाता है। लेकिन ग्रहणकाल की इसकी वेदना ही छाए हुए अंधकार को दूर करने के लिए संघर्ष हेतु और अविनाशी अवधारणा के देदीप्यमान प्रकाश को बिखेरने के लिए विशाल जनसमूह को प्रेरित करती है।
ऐसा लगता है कि राष्ट्र को उचित सीख लेने और इसके माध्यम से उस अवधारणा हेतु अपनी प्रतिबध्दता बहाल करने के लिए इतिहास जान-बूझकर ऐसी अग्नि-परीक्षा की स्थिति पैदा करता है।
ऐसा ही कुछ जून 1975 में भारत में हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत पर कू्रर आपातकालीन शासन लागू कर लोकतंत्र पर ग्रहण लगा दिया। उन्नीस माह के बाद कांग्रेस पार्टी की तानाशाही के विरुध्द भारत की जनता के गौरवशाली संघर्ष के परिणामस्वरूप यह ग्रहण छँटा। यदि आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक अंधकारमय अवधि थी तो लोकतंत्र की बहाली के लिए किया गया विजयी संघर्ष सबसे देदीप्यमान घटना। ऐसा हुआ कि मैं अपने हजारों देशवासियों की तरह आपातकाल की संपूर्ण उन्नीस माह की अवधि जेल में व्यतीत करने के कारण इसका भुक्तभोगी तथा आपातकाल के विरुध्द युध्द में विजय प्राप्त करनेवाली लोकतंत्र सेना का एक सेनानी-दोनों रूपों में था।
जून 1975 की दो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ:
भारत की स्वतंत्रता के साठ वर्षों पर नजर डालने पर पता चलता है कि इन छह दशकों में दो तिथियाँ ऐसी हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है और ये दोनों जून 1975 से जुड़ी हुई हैं।
इनमें से एक है-12 जून। सभी राजनीतिक विश्लेषकों को अचंभे में डालते हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में इंदिरा कांग्रेस की भारी पराजय हुई। दूसरा, उसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा में चुने जाने को निरस्त कर दिया और इसके साथ ही चुनावों में भ्रष्टाचार फैलाने के आधार पर उन्हें छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया।
दूसरी तिथि है-25 जून। लोकतंत्र-प्रेमियों के लिए यह तिथि स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे काले दिवसों में से एक के रूप में याद रखी जाएगी। इस दुर्भाग्यपूर्ण तिथि से घटनाओं की ऐसी शृंखला चल पड़ी, जिसने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी तानाशाही में परिवर्तित कर दिया।
दिल्ली में जून के महीने में सबसे अधिक गरमी होती है। अतएव जब दल-बदल के विरुध्द प्रस्तावित कानून से संबंधित संयुक्त संसदीय समिति ने बगीचों के शहर बंगलौर, जो कि ग्रीष्मकाल में भी अपनी शीतल-सुखद जलवायु के लिए विख्यात है, में 26-27 जून को अपनी बैठक करने का निर्णय लिया तो मुझे काफी प्रसन्नता हुई। हम दोनों-अटलजी और मैं-इस समिति के सदस्य थे, जिसके कांग्रेस (ओ) के नेता श्याम नंदन मिश्र भी सदस्य थे।
हालाँकि, जब 25 जून की सुबह मैं दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर बंगलौर जानेवाले विमान पर सवार हुआ तो मुझे इस बात का जरा भी खयाल नहीं था कि यह यात्रा दो वर्ष लंबी अवधि के लिए मेरे 'निर्वासन' की शुरुआत है, जिसके संबंध में माउंट आबू बैठक के दौरान पार्टी सांसद और प्रख्यात ज्योतिषी डॉ. वसंत कुमार पंडित ने भविष्यवाणी की थी।
लोकसभा के अधिकारियों ने बंगलौर हवाई अड्डे पर मेरे सहयात्री मिश्र और मेरी अगवानी की। राज्य विधानसभा के विशाल भवन के पास स्थित विधायक निवास पर हमें ले जाया गया। अटलजी एक दिन पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे। इस संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष थे-कांग्रेस पार्टी के दरबारा सिंह, जो बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री बने।
26 जून को सुबह 7.30 बजे मेरे पास जनसंघ के स्थानीय कार्यालय से एक फोन आया। दिल्ली से जनसंघ के सचिव रामभाऊ गोडबोले का एक अत्यावश्यक संदेश था। वे कह रहे थे कि मध्य रात्रि के तुरंत बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तारी जारी है। पुलिस शीघ्र ही अटलजी और आपको गिरफ्तार करने के लिए पहुँचने वाली होगी। मैंने यह सूचना श्याम बाबू को दी। इसके बाद हम लोग एक साथ अटलजी के कमरे में गए। इस संबंध में संक्षिप्त चर्चा के बाद हम इस निर्णय पर पहुँचे कि हम लोग गिरफ्तारी से बचने का प्रयास नहीं करेंगे।
8.00 बजे आकाशवाणी से समाचार सुनने के लिए मैंने रेडियो चलाया। मुझे आकाशवाणी समाचारवाचक की परिचित आवाज के स्थान पर इंदिरा गांधी की गमगीन आवाज सुनाई दी। यह उनका राष्ट्र के नाम किया जानेवाला अचानक प्रसारण था, इस सूचना के साथ कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल घोषित कर दिया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आंतरिक अशांति से निबटने के लिए आपातकाल लागू करना आवश्यक था।
मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, जब मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना कि विपक्ष के बहुत बड़े षडयंत्र से देश को बचाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही उनका मनगढ़ंत आरोप यह था कि कुछ ऐसे तत्त्व हैं, जो लोकतंत्र के नाम पर भारत के लोकतंत्र को मिटाने के लिए तत्पर थे और इसे रोकने की आवश्यकता थी।
अटलजी और मैंने एक संयुक्त प्रेस वक्तव्य तैयार किया, जिसमें जयप्रकाशजी* और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी की भर्त्सना की गई, आपातकाल की निंदा की गई और घोषणा की गई कि 26 जून, 1975 का वही ऐतिहासिक महत्त्व होगा, जो स्वतंत्रता पूर्व अवधि में 9 अगस्त, 1942 का है, जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासकों से कहा था-'भारत छोड़ो।'
हालाँकि यह वक्तव्य एक व्यर्थ प्रयास था। लोगों तक इस संदेश को पहुँचाने का कोई माध्यम ही नहीं था, क्योंकि आपातकाल की घोषणा के साथ ही सरकार ने तानाशाही की चिरपरिचित परंपरा के अनुकूल प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी। स्वतंत्रता के बाद पहली बार प्रेस पर पूर्ण सेंसरशिप** लगाई गई थी।
पुलिस हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए सुबह 10.00 बजे आ पहुँची। प्रख्यात समाजवादी नेता मधु दंडवते भी एक अन्य संसदीय समिति की बैठक में भाग लेने के लिए बंगलौर में मौजूद थे, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। हम चारों को बंगलौर सेंट्रल जेल ले जाया गया। उस दिन, मेरी डायरी*** में उल्लिखित है-''26 जून, 1975 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का अंतिम दिन हो सकता है। आशा करता हूँ कि मेरा यह भय गलत सिध्द हो।'
-लालकृष्ण आडवाणी
(यह लेख वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा 'मेरा देश मेरा जीवन' से लिया गया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण 25 जून को भोपाल में श्रीश्री रविशंकर करेंगे )
शुक्रवार, 18 जून 2010
जम्मू-कश्मीर सरकार का हिंदुओं पर जजिया कर
जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा 1 जुलाई 2010 से माता वैष्णों देवी दर्शनों के लिए अपनी गाड़ियों से जाने वाले श्रद्धालुओं की प्रत्येक कार पर 2000 रूपये व तीन दिन के बाद 2000 रूपये प्रतिदिन की दर से एंट्री फीस वसूल की जा रही है।
इसी प्रकार बाबा अमरनाथ यात्रा पर अपनी गाड़ी से जाने वाले श्रद्धालुओं से 2000 रूपये एंट्री फीस और सात दिन के बाद 2000 रूपये प्रतिदिन दर से एंट्री फीस वसूल की जा रही है।
श्रद्धालुओं एवं लंगर संस्थाओं से तुगलकी फरमान जारी करके जजिया कर वसूल किया जा रहा है। जजिया रूपी टैक्स को 300 से बढ़ाकर सीधा 2300 कर दिया गया है, जो कि आठ गुना है।
इसी तरह से माता वैष्णो देवी व अमरनाथ यात्रियों को लेकर आने वाले वाहन पर भी 24 सौ रुपये टैक्स लगा दिया गया है।
पिछले कई सालों से लंगर लगाने वाले स्थल को भी कम कर दिया गया है, वहीं लंगर कमेटियों को अपने ही देश में पहचान पत्र लाजिमी कर दिया गया है। हिंदुओं को जलील करने की इससे घटिया कार्यवाही और क्या होगी कि अपने ही देश के एक हिस्से में प्रवेश के लिए वीजा फीस वसूली जा रही है, जिसकी राशि 25,000 रुपये है। जो कि दुनिया के सभी देशों से ज्यादा है।
सरकार की दोगली वोट बैंक की राजनीति बेहद अफसोसजनक है। एक ओर जहां हज यात्रियों को सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अपने ही देश में हिंदुओं से जजिया कर वसूला जा रहा है।
अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए देश के विभिन्न हिस्से से यहां आकर लोग लंगर लगाते हैं। इन्हें सहयोग करने के बजाए सरकार सिक्योरिटी मनी के नाम पर 25 हजार रुपये जमा करा रही है। यह राशि उन्हें वापस नहीं की जाएगी।
केन्द्र सरकार की कमजोर नीतियों की वजह से आज हिन्दुस्तान में देश विरोधी ताकतें सक्रिय हो रही हैं, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा हिन्दुओं पर लगाया गया जजिया कर है।
सरकार द्वारा लगाए गए टैक्स यहां आने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। जिसे बर्दास्त नहीं किया जाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा 1 जुलाई 2010 से माता वैष्णों देवी दर्शनों के लिए अपनी गाड़ियों से जाने वाले श्रद्धालुओं की प्रत्येक कार पर 2000 रूपये व तीन दिन के बाद 2000 रूपये प्रतिदिन की दर से एंट्री फीस वसूल की जा रही है।
इसी प्रकार बाबा अमरनाथ यात्रा पर अपनी गाड़ी से जाने वाले श्रद्धालुओं से 2000 रूपये एंट्री फीस और सात दिन के बाद 2000 रूपये प्रतिदिन दर से एंट्री फीस वसूल की जा रही है।
श्रद्धालुओं एवं लंगर संस्थाओं से तुगलकी फरमान जारी करके जजिया कर वसूल किया जा रहा है। जजिया रूपी टैक्स को 300 से बढ़ाकर सीधा 2300 कर दिया गया है, जो कि आठ गुना है।
इसी तरह से माता वैष्णो देवी व अमरनाथ यात्रियों को लेकर आने वाले वाहन पर भी 24 सौ रुपये टैक्स लगा दिया गया है।
पिछले कई सालों से लंगर लगाने वाले स्थल को भी कम कर दिया गया है, वहीं लंगर कमेटियों को अपने ही देश में पहचान पत्र लाजिमी कर दिया गया है। हिंदुओं को जलील करने की इससे घटिया कार्यवाही और क्या होगी कि अपने ही देश के एक हिस्से में प्रवेश के लिए वीजा फीस वसूली जा रही है, जिसकी राशि 25,000 रुपये है। जो कि दुनिया के सभी देशों से ज्यादा है।
सरकार की दोगली वोट बैंक की राजनीति बेहद अफसोसजनक है। एक ओर जहां हज यात्रियों को सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अपने ही देश में हिंदुओं से जजिया कर वसूला जा रहा है।
अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए देश के विभिन्न हिस्से से यहां आकर लोग लंगर लगाते हैं। इन्हें सहयोग करने के बजाए सरकार सिक्योरिटी मनी के नाम पर 25 हजार रुपये जमा करा रही है। यह राशि उन्हें वापस नहीं की जाएगी।
केन्द्र सरकार की कमजोर नीतियों की वजह से आज हिन्दुस्तान में देश विरोधी ताकतें सक्रिय हो रही हैं, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा हिन्दुओं पर लगाया गया जजिया कर है।
सरकार द्वारा लगाए गए टैक्स यहां आने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। जिसे बर्दास्त नहीं किया जाना चाहिए।
इसी प्रकार बाबा अमरनाथ यात्रा पर अपनी गाड़ी से जाने वाले श्रद्धालुओं से 2000 रूपये एंट्री फीस और सात दिन के बाद 2000 रूपये प्रतिदिन दर से एंट्री फीस वसूल की जा रही है।
श्रद्धालुओं एवं लंगर संस्थाओं से तुगलकी फरमान जारी करके जजिया कर वसूल किया जा रहा है। जजिया रूपी टैक्स को 300 से बढ़ाकर सीधा 2300 कर दिया गया है, जो कि आठ गुना है।
इसी तरह से माता वैष्णो देवी व अमरनाथ यात्रियों को लेकर आने वाले वाहन पर भी 24 सौ रुपये टैक्स लगा दिया गया है।
पिछले कई सालों से लंगर लगाने वाले स्थल को भी कम कर दिया गया है, वहीं लंगर कमेटियों को अपने ही देश में पहचान पत्र लाजिमी कर दिया गया है। हिंदुओं को जलील करने की इससे घटिया कार्यवाही और क्या होगी कि अपने ही देश के एक हिस्से में प्रवेश के लिए वीजा फीस वसूली जा रही है, जिसकी राशि 25,000 रुपये है। जो कि दुनिया के सभी देशों से ज्यादा है।
सरकार की दोगली वोट बैंक की राजनीति बेहद अफसोसजनक है। एक ओर जहां हज यात्रियों को सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अपने ही देश में हिंदुओं से जजिया कर वसूला जा रहा है।
अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए देश के विभिन्न हिस्से से यहां आकर लोग लंगर लगाते हैं। इन्हें सहयोग करने के बजाए सरकार सिक्योरिटी मनी के नाम पर 25 हजार रुपये जमा करा रही है। यह राशि उन्हें वापस नहीं की जाएगी।
केन्द्र सरकार की कमजोर नीतियों की वजह से आज हिन्दुस्तान में देश विरोधी ताकतें सक्रिय हो रही हैं, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा हिन्दुओं पर लगाया गया जजिया कर है।
सरकार द्वारा लगाए गए टैक्स यहां आने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। जिसे बर्दास्त नहीं किया जाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा 1 जुलाई 2010 से माता वैष्णों देवी दर्शनों के लिए अपनी गाड़ियों से जाने वाले श्रद्धालुओं की प्रत्येक कार पर 2000 रूपये व तीन दिन के बाद 2000 रूपये प्रतिदिन की दर से एंट्री फीस वसूल की जा रही है।
इसी प्रकार बाबा अमरनाथ यात्रा पर अपनी गाड़ी से जाने वाले श्रद्धालुओं से 2000 रूपये एंट्री फीस और सात दिन के बाद 2000 रूपये प्रतिदिन दर से एंट्री फीस वसूल की जा रही है।
श्रद्धालुओं एवं लंगर संस्थाओं से तुगलकी फरमान जारी करके जजिया कर वसूल किया जा रहा है। जजिया रूपी टैक्स को 300 से बढ़ाकर सीधा 2300 कर दिया गया है, जो कि आठ गुना है।
इसी तरह से माता वैष्णो देवी व अमरनाथ यात्रियों को लेकर आने वाले वाहन पर भी 24 सौ रुपये टैक्स लगा दिया गया है।
पिछले कई सालों से लंगर लगाने वाले स्थल को भी कम कर दिया गया है, वहीं लंगर कमेटियों को अपने ही देश में पहचान पत्र लाजिमी कर दिया गया है। हिंदुओं को जलील करने की इससे घटिया कार्यवाही और क्या होगी कि अपने ही देश के एक हिस्से में प्रवेश के लिए वीजा फीस वसूली जा रही है, जिसकी राशि 25,000 रुपये है। जो कि दुनिया के सभी देशों से ज्यादा है।
सरकार की दोगली वोट बैंक की राजनीति बेहद अफसोसजनक है। एक ओर जहां हज यात्रियों को सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अपने ही देश में हिंदुओं से जजिया कर वसूला जा रहा है।
अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए देश के विभिन्न हिस्से से यहां आकर लोग लंगर लगाते हैं। इन्हें सहयोग करने के बजाए सरकार सिक्योरिटी मनी के नाम पर 25 हजार रुपये जमा करा रही है। यह राशि उन्हें वापस नहीं की जाएगी।
केन्द्र सरकार की कमजोर नीतियों की वजह से आज हिन्दुस्तान में देश विरोधी ताकतें सक्रिय हो रही हैं, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा हिन्दुओं पर लगाया गया जजिया कर है।
सरकार द्वारा लगाए गए टैक्स यहां आने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। जिसे बर्दास्त नहीं किया जाना चाहिए।
लेबल:
अमरनाथ,
जम्मू कश्मीर,
तुगलकी,
वैष्णों देवी,
हिन्दु,
हिन्दुस्तान,
hardayal
सोमवार, 31 मई 2010
एक छुपा हुआ सत्य?????????????ताजमहल..........बी.बी.सी.
बी.बी.सी. कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........
ताजमहल का आकाशीय दृश्य......
आतंरिक पानी का कुंवा............
ताजमहल और गुम्बद के सामने का दृश्य
गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य.....
शिखर के ठीक पास का दृश्य.........
आँगन में शिखर के छायाचित्र कि बनावट.....
प्रवेश द्वार पर बने लाल कमल........
ताज के पिछले हिस्से का दृश्य और बाइस कमरों का समूह........
पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजों का दृश्य........
विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा.....
मकबरे के पास संगीतालय........एक विरोधाभास.........
ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........
निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह.........
दीवारों पर बने हुए फूल......जिनमे छुपा हुआ है ओम् ( ॐ ) ....
निचले तल पर जाने के लिए सीढियां........
कमरों के मध्य 300फीट लंबा गलियारा..
निचले तल के२२गुप्त कमरों मे सेएककमरा...
२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य.......
अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य..
एक बंद कमरे की वैदिक शैली में
निर्मित छत......
ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....
दरवाजों में लगी गुप्त दीवार,जिससे अन्य कमरों का सम्पर्क था.....
बहुत से साक्ष्यों को छुपाने के लिए,गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा......
बुरहानपुर मध्य प्रदेश मे स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी कि मृत्यु हुई थी.......
बादशाह नामा के अनुसार,, इस स्थान पर मुमताज को दफनाया गया.........

अब कृपया इसे पढ़ें .........
प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........
"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"
प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था.....

ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था,,
=>शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६ माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे ,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......
=>यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ....
=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------
="महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------
पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...
और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...
प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है.....
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----
==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है...
==>मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......
==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं
प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.......
==>ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब....????
राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....
ज़रा सोचिये....!!!!!!
कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत,शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों......?????
तथा......
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???? ???
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......
शुक्रवार, 14 मई 2010
कसाब माध्यम से भारत को विश्व के आतंकवाद पर यु.एस.ए. की दोगली नीतियों को उजागर करना चाहिए ????????
कसाब के माध्यम से भारत को विश्व के आतंकवाद पर यु.एस.ए. की दोगली नीतियों को उजागर करना चाहिए ????????
कसब को कहे को फासी लगाओ अगर फासी ही लगानी है तों सबसे पहले ग्रहमंत्री जिन के समय में हमला हुआ , मुंबई अटैक के जिम्मेदारो को और यु.एस.ए. में बैठे हेडली को पाकिस्तान में बैठे प्लान कर्ताओ को हां कसब को कभी फासी नहीं देनी चाहिए
क्योकी कसब ही है जो आप के हाथ में जिवंत सवूत है अगर कसब मर गया तों दोषी यु.एस.ए के हेडली, पाकिस्तानी आई.एस.आई. के हुक्मरानों , और इंडियन देश द्रोहियों को फासी कैसे लगेगी मेरे भाई देश के कानून वयवस्थ वदलेगी तों हमें और आप को दोषी के हेडली , पाकिस्तानी इसी के हुक्मरानों , और इंडियन देश द्रोहियों के साथ कसब को भी फासी पर चड़ाने का मोका मिलेगा ना जाने कितने सफेदपोस और विदेशी हमारे भारत माँ पर हमले में समलित हो. इस समय तों आई .बी. रो के साथ, हमारे सर्वोच्य न्यालय के जज रहे, रक्षा विशेसगय हो और मिडीया और राजनेताओ के पंहुचा से कोसो दूर और अगर कोई कसब के वारे में खोज करना चाहे तों देश द्रोह का मामाला दर्ज ना करके कसब के जुर्म में समलित माना जाए
कसाब के माध्यम से भारत को तुरन्त के विश्व के आतंकवाद पर यु.एस.ए. की दोगली नीतियों को उजागर करना चाहिए
आप सभी प्रोवोध वर्ग में समलित है फिर क्यों ऐसी बाते करते है आज तक जिन लोगो को फासी दी गयी उससे राज ही दफन हुए है हाथ कुछ नहीं लगा इन्हे तों त़ाउम्र जख्म देते रहना चाहिए
कसब को कहे को फासी लगाओ अगर फासी ही लगानी है तों सबसे पहले ग्रहमंत्री जिन के समय में हमला हुआ , मुंबई अटैक के जिम्मेदारो को और यु.एस.ए. में बैठे हेडली को पाकिस्तान में बैठे प्लान कर्ताओ को हां कसब को कभी फासी नहीं देनी चाहिए
क्योकी कसब ही है जो आप के हाथ में जिवंत सवूत है अगर कसब मर गया तों दोषी यु.एस.ए के हेडली, पाकिस्तानी आई.एस.आई. के हुक्मरानों , और इंडियन देश द्रोहियों को फासी कैसे लगेगी मेरे भाई देश के कानून वयवस्थ वदलेगी तों हमें और आप को दोषी के हेडली , पाकिस्तानी इसी के हुक्मरानों , और इंडियन देश द्रोहियों के साथ कसब को भी फासी पर चड़ाने का मोका मिलेगा ना जाने कितने सफेदपोस और विदेशी हमारे भारत माँ पर हमले में समलित हो. इस समय तों आई .बी. रो के साथ, हमारे सर्वोच्य न्यालय के जज रहे, रक्षा विशेसगय हो और मिडीया और राजनेताओ के पंहुचा से कोसो दूर और अगर कोई कसब के वारे में खोज करना चाहे तों देश द्रोह का मामाला दर्ज ना करके कसब के जुर्म में समलित माना जाए
कसाब के माध्यम से भारत को तुरन्त के विश्व के आतंकवाद पर यु.एस.ए. की दोगली नीतियों को उजागर करना चाहिए
आप सभी प्रोवोध वर्ग में समलित है फिर क्यों ऐसी बाते करते है आज तक जिन लोगो को फासी दी गयी उससे राज ही दफन हुए है हाथ कुछ नहीं लगा इन्हे तों त़ाउम्र जख्म देते रहना चाहिए
लेबल:
आतंकवाद,
पाकिस्तानी,
मिडीया,
मुंबई अटैक,
यु.एस.ए.,
सर्वोच्य न्यालय
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
भारतीय लोकतान्त्रिक में प्रतिपक्ष की आवाज और मीडिया
दुनिया के किसी भी देश मै शायद ही कोई ऐसा लोकतान्त्रिक देश हो जैसा देश हमारा भारत है और भारत देश की मिडीया तंत अब ये खेल कहा से शुरू हुआ इसका उत्तर तों हम आप से वेहतर बी.जे.पी.ही बता सकती है,जो खेल प्रमोद महाजन और अरुण जी की मंडली ने किया था आज सत्तासीन पार्टी कर रही है वरना भारतीय लोकतान्त्रिक में प्रतिपक्ष की आवाज मीडिया तंत ऐसे निगल जाये जैसे अजगर मुह में आई हुई वन की चिड़िया के बच्चे को .
http://www.youtube.com/watch?v=cEx5LrsYjTc
२१ अप्रैल की महगाई की रैली देश और दुनिया को दिखने के लिए हमारे मीडिया समूह की जवाव देही थी जिससे देश दुनिया को मालूम होता कि भारत लोकतान्त्रिक देश का मुखिया है और यहाँ जब कभी सत्तासीन पार्टी कमजोर और गरीवो या जन विरोधी नीतियो का मार्ग पकडती है तों देश का प्रतिपक्ष जन आवाज वन के सत्ता के मद लोभियों को मधोसी से जागता है क्योंको सत्ता की चावियों की मास्टर चावी जनता के हाथ में है और जनता जब चाहे उसे घुमा के राज काज का टाला खोल और वन्द कर सकती है
हमारे मीडिया समूह स्वयं के कर्म पथ से भटका रहे है उन्हें रैली में रोड जम दिख पर रोड जम कि जिम्मेदारी कोन लेगा दिल्ली पोलिस और सरकार अगर आप तैयार नहीं थे वयवस्था को सभालने के लिए तों आप (मीडिया समूह )ने दिल्ली पोलिस और सरकार ने और हमारे सुरक्षा और खुपिया तंत ने किस वैस पर रामलीला मैदान तक आने और वहा से संसद के द्वर तक जाने को कैसे कहा कही ये जनसैलाव संसद पर हमला कर देता जैसा कि राम जन्म भूमी आन्दोलन में हुआ तब दोषी कोन होता हमारे पी.ऍम.बी.जे.पी.अध्यक्ष,सरकार, हमारे सुरक्षा,खुपिया तंत,पोलिस या वो सुरक्षा चूक जो हम वार-वार दोहरते है अच्छा ही जो बी.जे.पी.अध्यक्ष वेसुध हो गए कही कोई अनहोनी हो गयी होती तों दुनिया हम पर हस रहा होता और हमारी मीडिया उसे टी आर. पी . के साथ ब्रेकिंग न्यूज़ वना रहा होता तव ना तों आई.पी.एल.खावर होता ना नित्यानन्द और ना ही ललित मोदी जिस देश में विपक्ष मरता है या मरा जाता है वह देश वेमौत मरता है और मेरा देश वैमौत मरने जा रहा है आप में से कोई है जो २०२० में भारत में फासीवाद या एक पार्टी राज्य तंत्र को लेन से रोक सके

दिल्ली में खेलो का आयोजन हो रहा है जब यहाँ का प्रशासन २-३ लाख की देशी प्रजा को २-४ घटो के लिए नहीं सभाल पाई तों किस उम्मीद से विदेशी महमानों को दिल्ली में रखोगे जहा ऑटो चालक दे लेकर चाट समोसा वैच्नेवाला सभी लुट में जुट जाये और प्रसासनिक तंत मस्त हो चेन की वंसी वजाए किस स्वपनलोक में जीते है मेरे पी. ऍम. और सी. ऍम
KAvi Hardayal KUshwaha +91-9990807740
http://www.youtube.com/watch?v=cEx5LrsYjTc
२१ अप्रैल की महगाई की रैली देश और दुनिया को दिखने के लिए हमारे मीडिया समूह की जवाव देही थी जिससे देश दुनिया को मालूम होता कि भारत लोकतान्त्रिक देश का मुखिया है और यहाँ जब कभी सत्तासीन पार्टी कमजोर और गरीवो या जन विरोधी नीतियो का मार्ग पकडती है तों देश का प्रतिपक्ष जन आवाज वन के सत्ता के मद लोभियों को मधोसी से जागता है क्योंको सत्ता की चावियों की मास्टर चावी जनता के हाथ में है और जनता जब चाहे उसे घुमा के राज काज का टाला खोल और वन्द कर सकती है

हमारे मीडिया समूह स्वयं के कर्म पथ से भटका रहे है उन्हें रैली में रोड जम दिख पर रोड जम कि जिम्मेदारी कोन लेगा दिल्ली पोलिस और सरकार अगर आप तैयार नहीं थे वयवस्था को सभालने के लिए तों आप (मीडिया समूह )ने दिल्ली पोलिस और सरकार ने और हमारे सुरक्षा और खुपिया तंत ने किस वैस पर रामलीला मैदान तक आने और वहा से संसद के द्वर तक जाने को कैसे कहा कही ये जनसैलाव संसद पर हमला कर देता जैसा कि राम जन्म भूमी आन्दोलन में हुआ तब दोषी कोन होता हमारे पी.ऍम.बी.जे.पी.अध्यक्ष,सरकार, हमारे सुरक्षा,खुपिया तंत,पोलिस या वो सुरक्षा चूक जो हम वार-वार दोहरते है अच्छा ही जो बी.जे.पी.अध्यक्ष वेसुध हो गए कही कोई अनहोनी हो गयी होती तों दुनिया हम पर हस रहा होता और हमारी मीडिया उसे टी आर. पी . के साथ ब्रेकिंग न्यूज़ वना रहा होता तव ना तों आई.पी.एल.खावर होता ना नित्यानन्द और ना ही ललित मोदी जिस देश में विपक्ष मरता है या मरा जाता है वह देश वेमौत मरता है और मेरा देश वैमौत मरने जा रहा है आप में से कोई है जो २०२० में भारत में फासीवाद या एक पार्टी राज्य तंत्र को लेन से रोक सके

दिल्ली में खेलो का आयोजन हो रहा है जब यहाँ का प्रशासन २-३ लाख की देशी प्रजा को २-४ घटो के लिए नहीं सभाल पाई तों किस उम्मीद से विदेशी महमानों को दिल्ली में रखोगे जहा ऑटो चालक दे लेकर चाट समोसा वैच्नेवाला सभी लुट में जुट जाये और प्रसासनिक तंत मस्त हो चेन की वंसी वजाए किस स्वपनलोक में जीते है मेरे पी. ऍम. और सी. ऍम
KAvi Hardayal KUshwaha +91-9990807740
मंगलवार, 30 मार्च 2010
फासीवाद आनेवाला है ?? राजमाता सोनिया जी और महाराज राहुल जी का साम्राज्य
मित्रो !
मेरा आप सभी से बस एक ही निवेदन है कि आप मे से जो भी सोनिया जी,राहुल जी shilaa jee ,अशोक चौहान को निमंत्रित करने सक्षम हो उन्हें आमंत्रित करे और मंच पर जब वे विराजमान हो, तब पकड़ के मंच से वहा से वाहर फेका जाये आप सभी की और से हमारे महा नायक के लिए छोटा सा उपहार है अगर कोई ऐसा करे तों हम उनके ताउम्र गुलाम होगे,
अब देश के आम और खास सभी ऐसे अपमानो के लिए स्वयं को तैयार करले क्यों की भारत मे तथाशीघ्र फासीवाद आनेवाला है और राजमाता सोनिया जी और महाराज राहुल जी के साम्राज्य मे ऐसे चापलूसों के सर पर ताज और सिपेसला कार होगे तों अभी से आदत डालनी होगी ,
राहुल महाराज जी के राज्य मे शादी जैसे पवित्र रिश्ते नहीं होगे देश मे खुली सेक्स मंडीयो के इंडेक्स होगे, जिन्हें सर्वोच्च न्यालय के नयायाधिपती संचालित करेगे और जब उन पुरुष-स्त्रियों से संतान उतपन्न होगी तों ये उन्हें प्रभू यशु की आज्ञा मानकार समाज को धर्म उपदेश के लिए कमेन्ट मे शिक्षित कर समाज मे उच्चाशिन कर सेक्सालय के पदारी न्युक्त करेगे देश मे मंदिर मस्जिदों और गुरुदावारो से कोई शोर करता मिलेगा तों ये सेक्सालय के पदारी ,नयायाधिपती उन्हें टीवी के न्यूज़ चेनलो पर क्रमिक कड़ीयो के दिखायेगे तब सेक्स मंडीयो के इंडेक्स मे इजाफा होगा और देश की विकास दर तीन अंको को पर करेगी यहाँ कोई गाव और गरीवी नाम की चिड़िया नहीं दिखेगी और हमारे मरहूम राजीव जी का भारत महान हो चुका होगा मित्रो उन दिनों मै रहू ना रहू इंटर नेट पर मेरा लेख जरुर रहेगा
कवि हरदयाल कुशवाहा
मेरा आप सभी से बस एक ही निवेदन है कि आप मे से जो भी सोनिया जी,राहुल जी shilaa jee ,अशोक चौहान को निमंत्रित करने सक्षम हो उन्हें आमंत्रित करे और मंच पर जब वे विराजमान हो, तब पकड़ के मंच से वहा से वाहर फेका जाये आप सभी की और से हमारे महा नायक के लिए छोटा सा उपहार है अगर कोई ऐसा करे तों हम उनके ताउम्र गुलाम होगे,
अब देश के आम और खास सभी ऐसे अपमानो के लिए स्वयं को तैयार करले क्यों की भारत मे तथाशीघ्र फासीवाद आनेवाला है और राजमाता सोनिया जी और महाराज राहुल जी के साम्राज्य मे ऐसे चापलूसों के सर पर ताज और सिपेसला कार होगे तों अभी से आदत डालनी होगी ,
राहुल महाराज जी के राज्य मे शादी जैसे पवित्र रिश्ते नहीं होगे देश मे खुली सेक्स मंडीयो के इंडेक्स होगे, जिन्हें सर्वोच्च न्यालय के नयायाधिपती संचालित करेगे और जब उन पुरुष-स्त्रियों से संतान उतपन्न होगी तों ये उन्हें प्रभू यशु की आज्ञा मानकार समाज को धर्म उपदेश के लिए कमेन्ट मे शिक्षित कर समाज मे उच्चाशिन कर सेक्सालय के पदारी न्युक्त करेगे देश मे मंदिर मस्जिदों और गुरुदावारो से कोई शोर करता मिलेगा तों ये सेक्सालय के पदारी ,नयायाधिपती उन्हें टीवी के न्यूज़ चेनलो पर क्रमिक कड़ीयो के दिखायेगे तब सेक्स मंडीयो के इंडेक्स मे इजाफा होगा और देश की विकास दर तीन अंको को पर करेगी यहाँ कोई गाव और गरीवी नाम की चिड़िया नहीं दिखेगी और हमारे मरहूम राजीव जी का भारत महान हो चुका होगा मित्रो उन दिनों मै रहू ना रहू इंटर नेट पर मेरा लेख जरुर रहेगा
कवि हरदयाल कुशवाहा
लेबल:
अशोक चौहान,
धर्मोपदेश,
फासीवाद,
भारत महान,
राहुल जी shilaa jee,
सेक्स,
सोनिया जी
सदस्यता लें
संदेश (Atom)